26/06/2019
होंठ लिपटे हैं, नजर बंद, कमर हांथों में
तेरे शहर में, तेरे साथ मेरा प्यार चले
साथ तेरा रहे यूं मौसम ए बहार चले
जिन्दगी खुशनसीब जन्नत ए चमन जैसी
तू जो आए तो मेरे सारे गम गुजार चले
रूप है चांद सा, ख़ुशबू है रातरानी सी
रात संग बैठकर अपनी ग़ज़ल संवार चले
होंठ लिपटे हैं, नजर बंद, कमर हांथों में
खूबसूरत रहा लम्हा वो बार बार चले
लोग पढ़ते हैं, देखते हैं और सुनते हैं
तुम्हारी रूह निकाले यहां उतार चले
एक चलने से तेरे, ये जहां चलता है
नील के साथ तुम चले तो बेशुमार चले
खींचता होंठ का तुम्हारे तिल
तुम्हें मिला तिरी खबर जाना
आज तुमको मैं बेखबर जाना
दुआ में मांगते हैं लोग मुझे
बात ये आज इस सहर जाना
खींचता होंठ का तुम्हारे तिल
और सबकुछ है बेअसर जाना
आई घर से वो सुर्ख आरिज़ में
दे दिया दांत का असर जाना
एक इक गोद में तुम्हारे सर
एक तुझमें मेरा बसर जाना
और क्या कर दिया कहो, तुमको
देखता नील दर ब दर जाना
तिरंगा बेटियां लहरा रही हैं
कहीं पर कोयलें कुछ गा रही हैं
मधुर संगीत की धुन आ रही है
निकलकर आज दरवाजों से बाहर
तिरंगा बेटियां लहरा रही हैं
तुम्हारे आंख की ख़ामोशियां सब
हमारी आंख से बतला रही हैं
खुली रंजिश में टकराता है भारत
हमारे देश की दरियादिली है
मुहब्बत सरफ़रोशी की तमन्ना
मुहब्बत ही जमीं समझा रही है
हृदय आकांक्षा से भर गया है
बालाएं जो रही वो जा रही हैं
कहां से छू गई मुझको सरापा
हवा ये नील को बहका रही है
चली आई मुझे शंकर बनाने
कभी ईश्वर कभी कंकर बनाने
लगा घर सा कोई अन्दर बनाने
सती के रूप में मेरी मुहब्बत
चली आई मुझे शंकर बनाने
बहुत सी बात थी खामोशियों में
जुबां उसको लगी जर्जर बनाने
चुनावी मसअला छाने लगा है
लगे अब खुशनुमा मंज़र बनाने
अधूरी सांस भी थी टूटने को
तभी वो आ गए रहबर बनाने
मुहब्बत नील का पर्याय है सर
इसे क्यों आ गए कमतर बनाने
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