Poem |
कपड़ों का बाजार बनाकर क्या करना
जीवन को किरदार बनाकर क्या करना
हम भी जी लेंगें मुर्दों की दुनिया में
फिर झूठी सरकार बनाकर क्या करना
घर का मालिक देख रहा मरते भाई
ये पिद्दी सरदार बनाकर क्या करना
बच जाएँ माँ ,बहनें तब तो बात बनें
अथवा ये आचार बनाकर क्या करना
मैं पागल हूँ, अच्छा हूँ, मैं ज़िन्दा हूँ
झूठा - मूठा प्यार बनाकर क्या करना
एक रहे कोई पर जीवन भर अपना
गैरों का संसार बनाकर क्या करना
साँसें , नब्ज़, हवा गर्मी से व्याकुल हैं
ऐसे अँखियाँ चार मिलाकर क्या करना
जिस घर की दहलीज मुझे घुसने न दे
ऐसे घर परिवार बनाकर क्या करना
6 comments:
इन पंक्तियो को पढ़कर बहुत आनन्द की अनुभूति हुई
🌹🌹🌹🌹🌹🌹बहूत्तम प्रयास...!
तात्कालिक परिस्थिति का अद्भुत चित्रण
Bahot sundar
भाई अति सुंदर चित्रण
रमणीयकम
अद्भुत शब्दो का संयोजन मित्र
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