09/06/2018

क्या करना

Poem 

कपड़ों का बाजार बनाकर क्या करना
जीवन को किरदार बनाकर क्या करना
हम भी जी लेंगें मुर्दों की दुनिया में
फिर झूठी सरकार बनाकर क्या करना

घर का मालिक देख रहा मरते भाई
ये पिद्दी सरदार बनाकर क्या करना

बच जाएँ माँ ,बहनें तब तो बात बनें
अथवा ये आचार बनाकर क्या करना

मैं पागल हूँ, अच्छा हूँ, मैं ज़िन्दा हूँ
झूठा - मूठा प्यार बनाकर क्या करना

एक रहे कोई पर जीवन भर अपना
गैरों का संसार बनाकर क्या करना

साँसें , नब्ज़, हवा गर्मी से व्याकुल हैं
ऐसे अँखियाँ चार मिलाकर क्या करना

जिस घर की दहलीज मुझे घुसने न दे
ऐसे घर परिवार बनाकर क्या करना

6 comments:

Unknown said...

इन पंक्तियो को पढ़कर बहुत आनन्द की अनुभूति हुई
🌹🌹🌹🌹🌹🌹बहूत्तम प्रयास...!

Unknown said...

तात्कालिक परिस्थिति का अद्भुत चित्रण

Unknown said...

Bahot sundar

Unknown said...

भाई अति सुंदर चित्रण

SWARSANATAN said...

रमणीयकम

Anonymous said...

अद्भुत शब्दो का संयोजन मित्र

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