18/07/2018

सफर ज़िन्दगी का ये कटता नही है



सफर ज़िन्दगी का ये कटता नही है
कहाँ चल दिये खुद को हमसे मिलाकर

शहर अजनबी सा ये हमको लगे है
कहाँ चल दिये साथी हमें आज़मा कर

कहाँ तुम चले से गये हो बता दो
दिखाओ नही प्यार अपना जता दो
इबादत तुम्हारी सदा है मेरे संग
कहाँ आ गया तुमको अपना बनाकर

ज़िन्दगी ये तेरे बिन सिमट सी गई है
मैं सच कह रहा यारा , मिट सी गई है
मुकम्मल बयाँ थी तुम्हारी वो बातें
ये क्या कर दिया तुमनें सपने सजाकर

तड़पता मेरा मन तुम्हारे बिना है
कि आओगे कब तुम दिनों-दिन गिना है
बहुत दिन सोयी पड़ी थी ये आँखें
ये क्या कर दिया तुमनें इनको जगाकर

सुनहरा सफर था, सुनहरी थी राहें
सुनहरा था जीवन , सुनहरी वो बाँहें
नज़ारे बदलते गये ज़िन्दगी के -
ये क्या कर दिया तुमनें नज़रें चुराकर

@नीलेन्द्र शुक्ल " नील "

1 comment:

Unknown said...

भाई आने वाले समय के बहुत ही अच्छे लेखक हो तो तुम

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