20/07/2016

" जी चाहता है "

जी चाहता है के बालों से तेरे मैं खेलूँ सुबह - शाम उसमें बिता दूँ,
जी चाहता है के गालों कि तेरी चढ़ी लालिमा को मैं दुल्हन बना लूँ ।
जी चाहता है के होंठों के रस को मैं अमृत बना के अधर पे सजा लूँ ,
जी चाहता है के बाँहों में तेरे नया और नया आशियाना बना लूँ ।।

जी चाहता है के हाँथों में तेरे स्वकर को मैं देकर के खुद को बचा लूँ ,
जी चाहता है के आँखों में तेरे मैं डूबूँ, सुबह - शाम उसमें नहा लूँ ।
जी चाहता है के आँसू को तेरे मैं मदिरा बना के गले में दबा लूँ  ,
जी चाहता है के आँचल में तेरे मैं सोऊँ, जहाँ को उसी में सुला लूँ ।।

जी चाहता है के आँधी बनूँ मैं, हो इतनी ही ताकत कि तुझको उड़ा लूँ,
जी चाहता है के बारिश बनूँ मैं हो इतना ही जल कि मैं तुझपे बरस लूँ ।
जी चाहता है के ओढूँ, बिछाऊँ तुझे अपना बिस्तर और चद्दर बना लूँ,
जी चाहता है के प्रकृति मैं बनकर सदा, सर्वदा तुझको अपने में ढ़क लूँ ।।

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