वन, उपवन, गिरि, कानन, कुञ्ज,पराग, सुराग, तड़ाग में हो।
तुम निर्मल, जल,थल, फल और मेरे सकल भाग में हो ।।
सरल,समीर, सरस, सरसुन्दर इन्दु सदृश तुम बिन्दु भी हो ।
तुम अमिट, अजेय, अनन्त, अखण्ड मेरे जीवन के आनन्द में हो ।।
ग्रीष्म, शरद, वर्षा, हेमन्त, शिषिर और वसन्त में हो ।
तुम शरद पूर्णिमा के जैसी मेरे सुख दुःख के सम्बन्ध में हो ।।
विह्वल, विमल, विकल, विश्वासी मेरे पापों के अविनाशी हो ।
तुम गंगा, यमुना, सरस्वती मेरे दीपक की तुम बाती हो ।।
है प्यार अद्भुत और अलौकिक पर रखती नही जरा सी हो ।
तुम हरिद्वार, केदारनाथ, अयोध्या, और मेरी काशी हो ।।
तुम अनुपम सुन्दर वेश बनाकर करती मुझको दीवाना ।
मैं आपकी यादों में खोया और जगत से हुआ बेगाना ।।
आवारा हूँ, बेगाना हूँ, हमेशा ही मैं हारा हूँ ।
कहते न बनती ये बातें किसका मैं हुआ सहारा हूँ ।।
तुम नये हो इस जगत में जीतकर की हो मुझे खुश ।
हूँ अकेला इस जगत में और तुम्हारी यादें हैं बस ।।
"अपनी जिन्दगी की कली खिले, न खिले पर
आपकी जिन्दगी पुष्पमय कर दें ।।"
तुम निर्मल, जल,थल, फल और मेरे सकल भाग में हो ।।
सरल,समीर, सरस, सरसुन्दर इन्दु सदृश तुम बिन्दु भी हो ।
तुम अमिट, अजेय, अनन्त, अखण्ड मेरे जीवन के आनन्द में हो ।।
ग्रीष्म, शरद, वर्षा, हेमन्त, शिषिर और वसन्त में हो ।
तुम शरद पूर्णिमा के जैसी मेरे सुख दुःख के सम्बन्ध में हो ।।
विह्वल, विमल, विकल, विश्वासी मेरे पापों के अविनाशी हो ।
तुम गंगा, यमुना, सरस्वती मेरे दीपक की तुम बाती हो ।।
है प्यार अद्भुत और अलौकिक पर रखती नही जरा सी हो ।
तुम हरिद्वार, केदारनाथ, अयोध्या, और मेरी काशी हो ।।
तुम अनुपम सुन्दर वेश बनाकर करती मुझको दीवाना ।
मैं आपकी यादों में खोया और जगत से हुआ बेगाना ।।
आवारा हूँ, बेगाना हूँ, हमेशा ही मैं हारा हूँ ।
कहते न बनती ये बातें किसका मैं हुआ सहारा हूँ ।।
तुम नये हो इस जगत में जीतकर की हो मुझे खुश ।
हूँ अकेला इस जगत में और तुम्हारी यादें हैं बस ।।
"अपनी जिन्दगी की कली खिले, न खिले पर
आपकी जिन्दगी पुष्पमय कर दें ।।"
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