मैं बारिश में भीगा हूँ जो,
इसके पीछे कोई साजिश है ।
तुम शायद समझ नही पाओ,
मेरे अन्दर की जो बारिश है ।।1।।
क्या तुम,क्या मैं,क्या बारिश ये ?
न कोई मुझे रुला सकता ।
है अन्त:करण में प्यार इतना,
स्वार्थी भी नही भुला सकता ।।2।।
जब टूट जाएँ सारे पत्ते,
तब वृक्ष न शोभित होता है ।
तब कुछ भी न अच्छा लगता,
समझो जब पतझड़ होता है ।।3।।
पीली होती पत्तियाँ यहाँ,
अब मैं भी पीला पड़ जाऊँ ।
जीवन हूँ मैं जी लिया बहुत,
जीवन से आगे बढ़ जाऊँ ।।4।।
उसके प्रति रखना स्नेह मेरे-
अन्दर कि मैं कुछ कर जाऊँ ।
उसकी यादों को और उसे,
लिखते - लिखते ही मर जाऊँ ।।5।।
तब हो जाए विश्वास यदि,
तो आके गले लगा लेना ।
और अपने नर्म उन हाँथों से,
मेरी चिता को आग लगा देना ।।6।।
आज जो फेंक रहे हो मुझको,
कल तुम फेंक नही पाओगे ।
बचा के रखना रोशनी प्यारे!
कल मुझे देख नही पाओगे ।।
इसके पीछे कोई साजिश है ।
तुम शायद समझ नही पाओ,
मेरे अन्दर की जो बारिश है ।।1।।
क्या तुम,क्या मैं,क्या बारिश ये ?
न कोई मुझे रुला सकता ।
है अन्त:करण में प्यार इतना,
स्वार्थी भी नही भुला सकता ।।2।।
जब टूट जाएँ सारे पत्ते,
तब वृक्ष न शोभित होता है ।
तब कुछ भी न अच्छा लगता,
समझो जब पतझड़ होता है ।।3।।
पीली होती पत्तियाँ यहाँ,
अब मैं भी पीला पड़ जाऊँ ।
जीवन हूँ मैं जी लिया बहुत,
जीवन से आगे बढ़ जाऊँ ।।4।।
उसके प्रति रखना स्नेह मेरे-
अन्दर कि मैं कुछ कर जाऊँ ।
उसकी यादों को और उसे,
लिखते - लिखते ही मर जाऊँ ।।5।।
तब हो जाए विश्वास यदि,
तो आके गले लगा लेना ।
और अपने नर्म उन हाँथों से,
मेरी चिता को आग लगा देना ।।6।।
आज जो फेंक रहे हो मुझको,
कल तुम फेंक नही पाओगे ।
बचा के रखना रोशनी प्यारे!
कल मुझे देख नही पाओगे ।।
No comments:
Post a Comment