26/06/2016

" इज़हार -ए- मोहब्बत "

जिन्दगी की शाम होनी चाहिए,
जाम की महफिल भी सजनी चाहिए ।
वैसे तो टूटे हुए हैं लाख दिल,
हर दिलों की प्यास बुझनी चाहिए ।।1।।

अहर्निश उनके खयालों में मस्त हूँ,
जिन्दगी बदनाम होनी चाहिए ।
दिन के कालों में बड़ा ही भेद है,
इसलिए बस रात होनी चाहिए ।।2।।

हो गया बदनाम फिर भी इश्क है,
जिन्दगी बर्बाद होनी चाहिए ।
दिल टुकड़े हों करोड़ों तब भी क्या?
अवयवों में यादें होनी चाहिए ।।3।।

अजनबी हो प्यार से वो कह गये,
प्यार की हर लहर सहनी चाहिए ।
हो अगर नफरत भी उनके हृदय मे,
नफरतों से कहर ढहनी चाहिए ।।4।।

गर वो चाहें सर कलम कर दें मगर,
इसका कुछ ईनाम होना चाहिए ।
उनकी इच्छाओं की जो भी लिस्ट हो,
कामना है पूर्ण होनी चाहिए ।।5।।

हम भी बस इक नज़्म बनकर रह गये,
नज़्मियत की लाज रखनी चाहिए ।
रोई हैं बरसों से मेरी आँखें ये ,
आँखें भी अब बन्द होनी चाहिए ।।6।।

अब मरूँ या तब मरूँ मैं क्या पता?
हो रही अब देर आज्ञा चाहिए ।
मरते दम तक ये कहूँगा मैं सदा,
बस तेरा ही साथ होना चाहिए ।।7।।

वाक्य हो अवसान का जो भी मगर,
उसमें तेरा नाम होना चाहिए ।
हों भले ही नाम कितने तत्सदृश,
राम न तेरा नाम होना चाहिए ।।8।।

हाँथ तेरा कर में होना चाहिए,
सामने मुखड़ा भी होना चाहिए ।
आँखों में मेरी सदा और सर्वदा,
बस तेरी ही आँख होनी चाहिए ।।9।।
                                         

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