तुम्हारे हुश्न की दिलकश जवानी याद आती है ,
कि अपनी वो अधूरी सी कहानी याद आती है।
तुम्हारा सामने आते ही मेरे बोल ना पाना ,
कि वो बातें तुम्हारी बेज़ुबानी याद आती हैं।।
अदाओं से ,इशारों से ,वो मेरा कत्ल कर देना ,
तुम्हारे इश्क पे मुझको रुवानी याद आती है।।
तुम्हारे संग बिताये पल सजे हैं चित्त में मेरे ,
मुझे अपनी वो पावन ज़िन्दगानी याद आती है।।
तुम्हें वो देखना स्कूल में जब प्रार्थना होती ,
कि वो बचपन कि कुछ यादें पुरानी याद आती हैं।।
बड़ा भोला सा था उस वक़्त जब तुम सीख देती थी ,
किसी से प्राप्त वो शिक्षा - सयानी याद आती है।।
तुम्हें जब भी कभी देखा मेरी बाँहों के घेरों में ,
कि वंशीवट कि वो राधा दीवानी याद आती हैं।।
आज बैठे हुए यूँ ही तुम्हारी बात जो छेड़ी,
तुम्हारे प्यार की पहली निशानी याद आती है।।
7 comments:
बेहद उम्दा लाजवाब बचपन की यादों को क्या शब्दों
पिरोया है ।।
यह कविता पढ़ते हुए मैं आज फिर बीते हुए लम्हों
में ध्यानमग्न रहा याद आए बचपन के दिन और कुछ बिछड़े साथी जिन्हें कभी भुलाया नही जा सकता ।।
कविता पढ़कर लगा जैसे कि मेरी ही बात हो रही हो
बहुत सुन्दर भैया
Nyc poetry bhai neel
किसी से प्राप्त वो शिक्षा - सयानी याद आती है।।
Bhai tumhri shiksha ki kahani mujhe bhi yaad aati hai.....good poem...some lines r very good
बचपन की प्यार भरी स्मृतियों को झकझोर दिया तुमने.! इन सबसे बड़ी बात तुम एक समर्थ कवि हो, जो अपने भावों को नैसर्गिक प्रवाह में बांध सकता है। ऐसे ही सृजन करते रहो मेरे प्रतिभावान भाई.!
मुझे महसूस हो रहा है...
मैं....
.खोया सा हूं...
बहुत सुन्दर
Kya bat hai
Bahot sundar
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