Akanksha Joshi |
ना जाने क्यों आज बहुत वो बेमन हैं
उनको कोई छोड़ गया है, उलझन है
मेरा अब तक दुश्मन नहीं बना कोई
उनकी ख़ातिर पूरी दुनिया दुश्मन है
जितनी माँग हुई थी, वो न दे पाए
शादी में उखड़ी - उखड़ी सी समधन है
सबकुछ छोड़ सकूँ तुझको कैसे छोड़ू
तू ही तो मेरी बहना! जीवन - धन है
इक अर्शे के बाद सही उस तट जाओ
मुक्ति मिल जायेगी प्यारे! संगम है
पूरी दुनिया मुझको सुन्दर दिखती है
इस पल मेरे साथ, हमारी हमदम हैं
तुमको हँसना है मुझपे, हँसते रहना
" नील " तमाशेबाज़ नहीं है, दर्पण है
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