Neel |
नही कोई ज्ञानी - ध्यानी हूँ
राग - द्वेष विमुक्त नही हूँ
जब से मेरा जन्म हुआ है
व्यक्त हूँ मैं, अव्यक्त नही हूँ
मुझे हर जगह भेद दिखे है
सुखद - दुखद परिवेश दिखे है
यथाशक्ति सब देखूँ - समझूँ
किसी का अन्धा भक्त नही हूँ
नही कोई ज्ञानी - ध्यानी हूँ
राग - द्वेष विमुक्त नही हूँ
रक्षक , कृषक , गरीबों का हूँ
इस धरती भारत माँ का हूँ
मरते हुए उन्हीं देवों की
साँस बनूँ मैं रक्त नही हूँ
नहीं कोई ज्ञानी - ध्यानी हूँ
राग - द्वेष विमुक्त नही हूँ
भूत - प्रेत चण्डाल के जैसे
है मन महाकाल के जैसे
मुझसे इतना नही डरो तुम
इतना भी मैं सख़्त नहीं हूँ
नहीं कोई ज्ञानी - ध्यानी हूँ
राग - द्वेष विमुक्त नही हूँ
खुद को मुझ तक लाकर देखो
अपना मुझे बनाकर देखो
जीवन अर्पित कर दूँगा बस
बैठा हूँ मैं , मैं पस्त नही हूँ
नहीं कोई ज्ञानी - ध्यानी हूँ
राग - द्वेष विमुक्त नही हूँ
जब से मेरा जन्म हुआ है
व्यक्त हूँ मैं , अव्यक्त नही हूँ ।
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