नीलेन्द्र शुक्ल " नील " |
हार कर मत बैठना तुम ज़िन्दगी की दौड़ में
युद्ध का परिणाम आता है सदा लड़ने के बाद
बोलना कैसे हमें है और उठना, बैठना
सीख पाओगे सही वृद्धों के संग रहने के बाद
फेंकना नंगा मुझे बीहड़ से रेगिस्तान में
भर सकेगें पेट अपना वो मेरे मरने के बाद
जिन्दगी संग काटने की बात करके आए थे
वो मुझे पहचान बैठे चार पल रहने के बाद
रक्त उनके हाँथ हैं है रक्त ही सारा बदन
हैं अभी खामोश वो जुल्मों - सितम सहने के बाद
देख लेना, सोंच लेना, पूछ लेना, जाँच लेना
यूँ नही ठुकराना तुम औरों के मुँह सुनने के बाद
आशियाने में गज़ब की भीड़ रहती है सदा
ऐसे मत मुँह फेरना अपनों के आ जाने के बाद
No comments:
Post a Comment