मुझको अपना मेहमान बना सकती हो क्या ?
मुझसे थोड़ी पहचान बना सकती हो क्या ?
जिसको भगवान बनाओ उसको पूजो पर
मुझको भोला इन्सान बना सकती हो क्या ?
मैं मन्दिर ,मस्जिद गिरिजाघर को क्यों जाऊँ
खुद को मेरा भगवान बना सकती हो क्या ?
मैं गिनता हूँ उन्मुक्त गगन में तारों को
खुद को तुम मेरा चाँद बना सकती हो क्या ?
छोड़ो सारा संसार गजब की दुनिया है
होंठों से छूकर जान बना सकती हो क्या ?
यूँ मत खोजो दुनिया में अंधे लोगों को
मुझको देखो पति-प्राण बना सकती हो क्या ?
मुझसे थोड़ी पहचान बना सकती हो क्या ?
जिसको भगवान बनाओ उसको पूजो पर
मुझको भोला इन्सान बना सकती हो क्या ?
मैं मन्दिर ,मस्जिद गिरिजाघर को क्यों जाऊँ
खुद को मेरा भगवान बना सकती हो क्या ?
मैं गिनता हूँ उन्मुक्त गगन में तारों को
खुद को तुम मेरा चाँद बना सकती हो क्या ?
छोड़ो सारा संसार गजब की दुनिया है
होंठों से छूकर जान बना सकती हो क्या ?
यूँ मत खोजो दुनिया में अंधे लोगों को
मुझको देखो पति-प्राण बना सकती हो क्या ?
3 comments:
अच्छा है । लिखते रहो
अच्छा लगा पढ़के
Wahhhh bahut sundar neelendra ji ab ap shringaar Ras me kuchh likhe
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