30/04/2017

बना सकती हो क्या

मुझको अपना मेहमान बना सकती हो क्या ?
मुझसे थोड़ी पहचान बना सकती हो क्या ?

जिसको भगवान बनाओ उसको पूजो पर
मुझको भोला इन्सान बना सकती हो क्या ?

मैं मन्दिर ,मस्जिद गिरिजाघर को क्यों जाऊँ
खुद को मेरा भगवान बना सकती हो क्या ?

मैं गिनता हूँ उन्मुक्त गगन में तारों को
खुद को तुम मेरा चाँद बना सकती हो क्या ?

छोड़ो सारा संसार गजब की दुनिया है
होंठों से छूकर जान बना सकती हो क्या ?

यूँ मत खोजो दुनिया में अंधे लोगों को
मुझको देखो पति-प्राण बना सकती हो क्या ?

26/04/2017

बहुत हैं

अल्लाह तेरी नज़र में बेशुमार बहुत हैं
ईश्वर नही दिखे कहीं दरबार बहुत हैं ।
इक मैं ही नही प्यार करके पाप किया हूँ ,
धरती पे मेरे जैसे गुनाहगार बहुत हैं

नज़रें जमाए देखती है हुश्न - मुहब्बत
मुझ जैसे उस नज़र में गिरफ्तार बहुत हैं

इस देश की हमदर्द निगाहों से मदद लो
सब नीच ही नही हैं मददगार बहुत हैं

गाँवों की दशा देख शहर ही भला लगे
घर कम ही देखता हूँ मैं दीवार बहुत हैं

माँ की दुवाएँ साथ हैं, बहनों की इबादत
गुस्से भरे पिता हैं मगर प्यार बहुत है

दाढ़ी,जटाएँ देख के भरम में मत पड़ो
पाखण्डियों के नाम बलात्कार बहुत हैं

बहनों की , बेटियों की यूँ इज्जत से न खेलो
शहरों में हवस के लिए बाज़ार बहुत हैं

गैरों का खाके कब तलक आराम करोगे
बाँटो तो सही ,देश में हकदार बहुत हैं

इसका कभी उसका हूँ सदा रोल निभाया
चेहरा है एक दोस्तों किरदार बहुत हैं

दिल से मिला हूँ सबसे नही बुद्धि लगाई
वो सोंचते हैं खुद को समझदार बहुत हैं

हर पाँच - वर्ष बाद दिखें हाँथ जोड़कर
भारत में दिखी नक्कटी सरकार बहुत हैं

दूजे के काँध रख के मियाँ ट्रिगर दबाएँ
इक " नील " तू ही मूर्ख होशियार बहुत हैं ।।

16/04/2017

न जाने कल कहाँ ये दोस्त तेरी दीक्षा हो


प्रिय बचपन की दोस्त दीक्षा मिश्रा जी को समर्पित ये गज़ल बहुत ही सीधी सरल और उदात्त स्वभाव की हैं   -------

महकती हो सदा फूलों सी वो ऐसी फिज़ा हो
खुले हों जुल्फ लहराती हुई कोई निशाँ हो ,
चमकती,चमचमाती धूप हो जैसे शरद की
सुनहरी शान्त सी कोमल हमारी दीक्षा हो ।।

नही चन्दा ,नही सूरज ,नही गुलनार माँगू
सदा खुशियों भरी, पावन पवन वो,दीक्षा हो ।।

अधूरी एक भी किरणें नही टकराएँ उससे,
कि छनकर जाएँ जिसपे रोशनी वो दीक्षा हो ।।

सभी हों राह ऐसी आज जिसपे पैर तेरा
पड़ें ,बिछ जाएँ सारे फूल जिसपे दीक्षा हो ।।

मिटें नापाक वो सारी सभी की भावनाएँ
कि जिसकी सोंच पे बैठी हुई ये दीक्षा हो ।।

बड़ी हसरत,बड़ी चाहत,बड़ा महफूज़ हूँ मैं
जिसे महफूज़ तुम रखना हमारी दीक्षा हो ।।

बहुत शीतल हिलोरें मारती हैं भावनाएँ
कि हो गरमी में जो बदरी सदृश वो,दीक्षा हो ।।

चलो अब नील तुम भी साथ चल लो ,
न जाने कल कहाँ ये दोस्त तेरी दीक्षा हो ।।

14/04/2017

कोशिश करता हूँ

लिखने और मिटाने की मैं कोशिश करता हूँ ,
अक्सर तुझको पाने की मैं कोशिश करता हूँ

सूरज,चन्दा,फूल,खिलौने डालूँ तेरी झोली में
तुझमें खुद मैं घुल जाने की कोशिश करता हूँ

माँ के चरणों की गाथाएँ बाबू जी का प्यार
सुबह-सवेरे दोहराने की कोशिश करता हूँ

बहनें हों उन्मुक्त हमारी जितना चाहें पढ़ पाएँ,
बाबू जी को समझाने की कोशिश करता हूँ

चाचा चाची,मामा मामी,भाई भौजी सब
सारे रिस्तों को पाने की कोशिश करता हूँ

शहरों में वो बात कहाँ जो गाँवों की अमराई में
फिर अपने घर को जाने की कोशिश करता हूँ

जन्नत - स्वर्ग की बातें अद्भुत कौन देख पाया अब तक
इक दूजे को सुलझाने की कोशिश करता हूँ

जिनसे आँखें डरती आई जीवन के हर मंज़र पे ,
उनसे आँख मिलाने की मैं कोशिश करता हूँ ।।

जब - जब अपना रूप बिगाड़ी तानाशाही सरकारें,
तब - तब मैं खुद टकराने की कोशिश करता हूँ ।।

रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!

देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...