स्त्रियों,
क्या चाहती हो ?
हमेशा की तरह अब भी
पुरुषों के तलवों तले रहना
उनके हाँ में हाँ मिलाना
या खुद को अधिकृत समझ ली हो उनका ।
जो द्वापर से लेकर आज तक
फाड़ते आ रहे हैं तुम्हारे चीर
और लगातार फाड़ते जा रहे हैं
निडर और निर्भीक,
क्या तुम्हारी चुप्पी कभी नही टूटने वाली ।
क्या तुम्हारा सिर्फ़ इसलिए जन्म हुआ है
कि सज , सँवर सको
लाली , लिप्स्टिक और काजल जैसे
तमाम तरह के पदार्थों से
सुन्दर दिख सको
या तुमने समझ लिया है
कि नही है तुम्हारा कोई अस्तित्व
इस समाज के भीतर
मात्र बच्चा पैदा करने की मशीन बनने के सिवा ।
क्या यह अधकचरा
डर भरा जीवन
तुम्हें सुख देता है ।
यदि नही तो आवाज ही नही
साथ ही उठाओ तलवार भी
और उतार दो उनको मौत के घाट
जो तुम्हारी अस्मिता को आँच दें,
उतारें तुम्हारी इज्जत सरेबाजार ।
मत रखो अपेक्षा मुझ जैसे
कायरों से,
मानसिकता के साथ - साथ
मजबूत करो अपनी देह भी
नही तो भकोस जाएँगें
तुम्हारा पूरा का पूरा समाज
जैसे
काटते हैं कसाई बेतरतीब सीधी गायों को ।।
24 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 28 दिसम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार आप सभी श्रेष्ठ कवियों का ।।
धन्यवाद सर ।
बहुत खूब निलेन्द्र शुक्ल जी, स्त्रियों का जीवन चित्रण ,पर अब समय बदल रहा है ,सही कहा स्त्रियों को भी जागृत होकर पुरानी परम्परावादी बेड़ियों को तोड़ना होगा और अपनी महत्ता साबित करनी होगी
बहुत खूब निलेन्द्र शुक्ल जी, स्त्रियों का जीवन चित्रण ,पर अब समय बदल रहा है ,सही कहा स्त्रियों को भी जागृत होकर पुरानी परम्परावादी बेड़ियों को तोड़ना होगा और अपनी महत्ता साबित करनी होगी
सदियों का दंश धीरे-धीरे जा रहा है। स्त्रियां आज हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं।
बहुत सुन्दर रचना ...
ब्लाग फौलोवर बटन लगाइये ताकि समय से छपने की जानकारी मिलती रहे । लिखते रहें ।
जी जरूरत है अब इसी चीज़ की क्योंकि हम दूसरों पर कब तक निर्भर रहेंगे ।
मैं कहना चाहूँगा मैम कि हम आज सिर्फ उभरती
हुई कुछ लड़कियों को देखकर ऐसा कह सकते हैं
और सही भी है कि लड़कियाँ हर क्षेत्र में आगे
बढ़ रही हैं मगर है हैवानों से जो उनके भीतर दहशत भरी है वो तो आज यथार्थ रूप में दिखता है मेरे कहने का तात्पर्य इतना है कि हम सिर्फ बौद्धिकता में ही नही अपितु शारीरिक दुर्बलता भी त्यागें ।।
बहुत बहुत आभार आपका मैम धन्यवाद ।।
सर इस विषय में थोड़ा सा अन्जान हूँ जानकारी
करके लगाता हूँ ।।
धन्यवाद सर ।
बहुत सुन्दर रचना
बहुत खूब लिखा आपने । आज जहाँ स्त्रियाँ हर क्षेत्रमें आगे बढ़ रही हैं ,कुछ अंशों में सामाजिक मानसिकता में भी बदलाव आया है ,पर अभी बहुत कुछ बदलना है । बौद्धिक विकास के साथ शारीरिक व मानसिक विकास की जरूरत है।
बहुत खूब लिखा आपने । आज जहाँ स्त्रियाँ हर क्षेत्रमें आगे बढ़ रही हैं ,कुछ अंशों में सामाजिक मानसिकता में भी बदलाव आया है ,पर अभी बहुत कुछ बदलना है । बौद्धिक विकास के साथ शारीरिक व मानसिक विकास की जरूरत है।
धन्यवाद सुधा जी ।
जी जी आवश्यकता है आज स्त्रियों में शारीरिक विकास ।।
बहुत आभार आपका शुभा जी ।।
नीलेंद्र शुक्ल की कविता अच्छी है पर इन विचारों में कोई नवीनता नहीं है.
गोपेश जी सर्वप्रथम मैं आपका अपने ब्लाॅग पर हृदय से स्वागत करता हूँ ।
और मैं ये बताना चाहता हूँ कि मैं प्राचीनता और
नवीनता के लिए नही अपितु समाज और सामाजिक गतिविधियों को देखता हूँ समझता हूँ
और जहाँ तक अपनी अल्प मेधा का प्रयोग होता है करता हूँ ,और जहाँ तक कविता में नवीनता की बात है तो आप जैसे श्रेष्ठ आलोचकों का सान्निध्य रहा तो जरूर कविता में नवीनता भी आएगी खैर आलोचना के लिए धन्यवाद ।।
बहुत बहुत आभार गोपेश सर ।।शुभरात्रि
बहुत सटीक वर्णन आज की स्त्री - जाति पर ।
वास्तव में जो हमारे चतुर्दिक देखने को मिल रहा है ये वास्तविक बदलाव तो उस दिन होगा जिस दिन से पुरुषवादी अनैतिक चेतना पर स्त्रीवादी चेतना हाबी होगी ,अपना परचम फहराएगी ।।
वैसे बेहतरीन कविता छोटे भाई ।।
वास्तव में जो हमारे चतुर्दिक देखने को मिल रहा है ये वास्तविक बदलाव नही है ।।शेष पूर्ववत्
बहुत बहुत आभार राहुल भइया आपका ।।।
स्त्री-जीवन की चुनौतियों का ज़िक्र उत्तम है. लिखते रहिये भाई. पांच लिंकों का आंनद पर आपकी रचना खूब फब रही है.
धन्यवाद रवीन्द्र सर ,
और एक बार पुनः आभार व्यक्त करता हूँ दिग्विजय अग्रवाल सर का जिन्होंने इस कविता को
पाँच लिंकों के आनन्द में जगह दी ।
नीलेश जी,आपकी कविता पढ़ी अच्छी लगी स्त्री और पुरुष के मध्य वासना के उस सम्बन्ध का निरूपण आपने किया जिसकी जितनी भी निन्दा की जाये कम है।लेकिन जिस नारी को कल्याणी कहा गया आज वो नारी भटकन के दौर से गुजर रही है,हमारा मानना है कि पुरुष तो नारी का एक खिलौना है,जब बच्चे थे मां बनकर जैसा संस्कार दिया वैसा ही जीवन जिया,जब युवा हुए तो पत्नी बन जैसा चाहा चाहे अपने प्यार के मोहपाश में बांधकर चाहे अपनी बेहूदी और कुटिल हरकतों के द्वारा पुरुष तो अपने द्वारा बनाये अपने ही जाल में फंसा पुरे जीवन उसी में घिसटता मरता चला जा रहा है।समाज पर् कलम उठे तो इसका ध्यान रहे कि एकांगी चिंतन विषमता को और बढ़ाएगा।
साहित्य की दृष्टि से सुन्दर रचना,शुभकामना मेरी।
नीलेश जी,आपकी कविता पढ़ी अच्छी लगी स्त्री और पुरुष के मध्य वासना के उस सम्बन्ध का निरूपण आपने किया जिसकी जितनी भी निन्दा की जाये कम है।लेकिन जिस नारी को कल्याणी कहा गया आज वो नारी भटकन के दौर से गुजर रही है,हमारा मानना है कि पुरुष तो नारी का एक खिलौना है,जब बच्चे थे मां बनकर जैसा संस्कार दिया वैसा ही जीवन जिया,जब युवा हुए तो पत्नी बन जैसा चाहा चाहे अपने प्यार के मोहपाश में बांधकर चाहे अपनी बेहूदी और कुटिल हरकतों के द्वारा पुरुष तो अपने द्वारा बनाये अपने ही जाल में फंसा पुरे जीवन उसी में घिसटता मरता चला जा रहा है।समाज पर् कलम उठे तो इसका ध्यान रहे कि एकांगी चिंतन विषमता को और बढ़ाएगा।
साहित्य की दृष्टि से सुन्दर रचना,शुभकामना मेरी।
बाबा जी सर्वप्रथम मैं आपको प्रणाम और आपका अभिनन्दन करता हूँ अपने ब्लाॅग पर और फिर ये जिक्र करना चाहूँगा कि मैं एकांगी चिंतन नही करता अपितु समाज मुझे जैसा दिखता है वैसे ही मेरी लेखनी लिखने पर मजबूर करती है और जहाँ बात रही पुरुषवादी चेतना की
तो जहाँ तक मैं जानता हूँ कि अभी तक जितने भी बलात्कार हुए हैं वो पुरुषों के द्वारा ही हुए हैं आपने कहीं नही सुना होगा कि आज स्त्रियों ने एक पुरुष के साथ बलात्कार कर उसे जान से मार दिया लेकिन हर रोज़ अखबारों के दूसरे - तीसरे पन्ने पर देखते होंगे कि आज इस स्थान पर सामूहिक दुष्कर्म में युवती की जान गई
और जहाँ रही कि स्त्रियाँ दबा के रख रही हैं पुरुषों को
तो ऐसा केवल पारिवारिक मसलों में देखा जाता है ।।
खैर कहने को तो बहुत कुछ है पर सारी बातें इस पर संभव नही ।।
पुनः आपको प्रणाम
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