मालवीय जी के प्रति -
करते न खुद पर अभिमान अविरल माँ गंगा समान
रखते विचार देदीप्यमान इस सूर्य कि किरणों के समान।
छवि उनकी सुन्दर शीतवान गगनस्थित इन्दु के समान
इस (विश्व )विद्यालय के सम्मान हम सब मिल करते हैं प्रणाम।
विश्वविद्यालय
विश्वविद्यालय की गरिमा को आओ सभी प्रणाम करें ,
अपनी सारी शक्ति झोंक दें और इसी का नाम करें ,
अपना हम कर्त्तव्य निभाएँ काम सुबह और शाम करें ।।
जितना पाया इस मंदिर से सब कुछ धारण कर बैठा ,
विश्वनाथ की कृपा हुई जो कविताकारक बन बैठा ,
मालवीय जी के मन्दिर का आज नील गुणगान करे ।।
सदाचरण की पावन गंगा ज्ञानरूप में बहती हैं ,
कुछ देवी जैसी प्रतिमाएँ विद्यालय में रहती हैं ,
छात्र यहाँ के दक्ष सभी गुरुजन का नित सम्मान करें ।।
जिस विद्यालय के आँगन में शीतल वो रजनीचर हैं ,
उस विद्यालय के आँगन से निकले कई प्रभाकर हैं ,
आओ सब समवेत भाव में विद्यालय को धाम करें ।।
पर्यावरण सुगन्धित, सुमधुर, पुष्पयुक्त सब पुष्कर हैं ,
संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी की वाणी बहती निर्झर है ,
इसपे अगर आँच भी आए खुद को हम नीलाम करें ।।
सदा पल्लवित होती जाए और सघन हो जाए ये ,
गायन, वादन, नृत्य देखते धरा गगन हो जाए ये ,
बगिया की हो प्रभा मनोहर, मञ्जुल और ललाम करें ।।
मुख्यद्वार है दिव्य , भव्य उसकी सुंदरता क्या गाऊँ ,
इतनी ही बस चाह रही की इसी धरा पे फिर आऊँ ,
सदा चमकता रहे स्वर्ग ये कभी नही विश्राम करें ।।
मिलती रहे प्रेरणा हम सबको ऐसे विद्यालय से ,
जीवन लक्ष्य भेद दे कुछ आशीष मिले देवालय से ,
जीवन की रंगीन सुबह का इसी धरा पे शाम करें ।।
जितना आज चमकता है इससे भी प्रखर उजाला हो ,
कभी पन्त हों, हों कबीर, तुलसी हों कभी निराला हों ,
काव्य - सृजन में कभी न्यूनता न हो कुछ आयाम करें ।।
दिव्य यहाँ के कुलपति जी की सोंच सभी अब सज्जित हों ,
उच्च शिखर पर जाएँ सारे बच्चे आज चमत्कृत हों ,
आइंस्टीन कभी हों बच्चे, उनको कभी कलाम करें ।।
विश्वमंच की पृष्ठभूमि पे इसे सजाते जाएँगे ,
सप्तसिंधु के पर सदा इसका झंडा लहराएँगे ,
यह समग्र - जग लोहा माने ऐसा कुछ अन्जाम करें ।।
करते न खुद पर अभिमान अविरल माँ गंगा समान
रखते विचार देदीप्यमान इस सूर्य कि किरणों के समान।
छवि उनकी सुन्दर शीतवान गगनस्थित इन्दु के समान
इस (विश्व )विद्यालय के सम्मान हम सब मिल करते हैं प्रणाम।
विश्वविद्यालय
विश्वविद्यालय की गरिमा को आओ सभी प्रणाम करें ,
अपनी सारी शक्ति झोंक दें और इसी का नाम करें ,
अपना हम कर्त्तव्य निभाएँ काम सुबह और शाम करें ।।
जितना पाया इस मंदिर से सब कुछ धारण कर बैठा ,
विश्वनाथ की कृपा हुई जो कविताकारक बन बैठा ,
मालवीय जी के मन्दिर का आज नील गुणगान करे ।।
सदाचरण की पावन गंगा ज्ञानरूप में बहती हैं ,
कुछ देवी जैसी प्रतिमाएँ विद्यालय में रहती हैं ,
छात्र यहाँ के दक्ष सभी गुरुजन का नित सम्मान करें ।।
जिस विद्यालय के आँगन में शीतल वो रजनीचर हैं ,
उस विद्यालय के आँगन से निकले कई प्रभाकर हैं ,
आओ सब समवेत भाव में विद्यालय को धाम करें ।।
पर्यावरण सुगन्धित, सुमधुर, पुष्पयुक्त सब पुष्कर हैं ,
संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी की वाणी बहती निर्झर है ,
इसपे अगर आँच भी आए खुद को हम नीलाम करें ।।
सदा पल्लवित होती जाए और सघन हो जाए ये ,
गायन, वादन, नृत्य देखते धरा गगन हो जाए ये ,
बगिया की हो प्रभा मनोहर, मञ्जुल और ललाम करें ।।
मुख्यद्वार है दिव्य , भव्य उसकी सुंदरता क्या गाऊँ ,
इतनी ही बस चाह रही की इसी धरा पे फिर आऊँ ,
सदा चमकता रहे स्वर्ग ये कभी नही विश्राम करें ।।
मिलती रहे प्रेरणा हम सबको ऐसे विद्यालय से ,
जीवन लक्ष्य भेद दे कुछ आशीष मिले देवालय से ,
जीवन की रंगीन सुबह का इसी धरा पे शाम करें ।।
जितना आज चमकता है इससे भी प्रखर उजाला हो ,
कभी पन्त हों, हों कबीर, तुलसी हों कभी निराला हों ,
काव्य - सृजन में कभी न्यूनता न हो कुछ आयाम करें ।।
दिव्य यहाँ के कुलपति जी की सोंच सभी अब सज्जित हों ,
उच्च शिखर पर जाएँ सारे बच्चे आज चमत्कृत हों ,
आइंस्टीन कभी हों बच्चे, उनको कभी कलाम करें ।।
विश्वमंच की पृष्ठभूमि पे इसे सजाते जाएँगे ,
सप्तसिंधु के पर सदा इसका झंडा लहराएँगे ,
यह समग्र - जग लोहा माने ऐसा कुछ अन्जाम करें ।।
4 comments:
Wahhhhh bhai neelendra kya bat hai bahut khub
aapne is kavita ke madhyam se '' विश्वविद्यालय ''ki sundarta ka varnan bahut hi asadharan tarike se se kiya hai ...or mujhe ye padh ke bahut accha laga iske liye aapko dhanyawad mitra Nilendra ji.....ek tarah se Mahamana Malaviya ji ko aapki taraf se yah kavita ek sachi sradhanjali bhi kah sakte hai..
सदा पल्लवित होती जाए और सघन हो जाए ये ,
गायन, वादन, नृत्य देखते धरा गगन हो जाए ये ,
बगिया की हो प्रभा मनोहर, मञ्जुल और ललाम करें ।।... Bahut sundar
Kya baat hai bhai gajab
nice poet bhai savshrest university
Post a Comment