22/07/2016

1 " छाया है गहरा अन्धकार "

ये बच्चे अभी तुम्हारी सोच से परे हैं, इन्हें जीने दो !












छाया है गहरा अन्धकार,
ऐसे में कुछ कर लो विचार ।।

संसार - समर सा लगता है
दुर्बल - जनमानस दिखता है
भाई , भाई को काट रहा,
बेटा  माँ - बाप को डाँट रहा
अब प्रेम का मौलिक - रूप नही
खिलने वाली वह धूप नही
अंगार पे चलते लोग यहाँ
पत्थर से लड़ते लोग यहाँ
हम उनसे क्या टकरायेंगे
क्या उनको मार भगायेंगे
जब घर वाले ही खन्जर हैं
आवारे हैं, सब बन्जर हैं
वो आ समक्ष ललकार रहा
प्रतिक्षण करता वो वार रहा
हम पीछे भगते जाते हैं
बस पीठ पे गोली खाते हैं
ऐसे समयों में दूर रहो
यूँ कहो न ,मुझसे करो प्यार ।।
                         
 ईराक हो या अफगान यहाँ,
सीरिया हो या जापान यहाँ
यूरोप में गोले बरसे हैं
खाने - पीने को तरसे हैं
अब खून से सड़कें लाल हुई
लोगों के जान की काल हुई
माँ पुत्र का चिथड़ा तन लेकर
परिजन का वो क्रन्दन लेकर
जाने कैसे सोई होगी
जाने कैसे रोई होगी
आँखों से आँसू सूख गये
जो पास कभी थे दूर गये
अब कैसे वह जी पायेगी
निश्चित पागल हो जाएगी
दुनिया को कुछ भी लगे मगर
मुझको ये बात रुलाती है
ऐसी स्थिति को तुम भी समझो ।
पश्चात करो बातें हजार ।।

नीरवता मुझको दिखती है
विह्वलता तम पर लिखती है
मार्तण्ड अदृष्ट सा लगता है
अब वह प्रचण्ड सा दिखता है
घनघोर निराशा सी छाई
यह देख मृत्यु - आँधी आई
सब नष्ट - भ्रष्ट हो जायेगा
यदि उसको मीत बनायेगा
यह देख सामने काल खड़ा
है लिए रूप विकराल बड़ा
मुख का आकार नही इसके
तन का विस्तार नही इसके
पर हैं विचार निकृष्ट बहुत
वह मारेगा , है धृष्ट बहुत
किस तरह उसे समझाऊँ मैं
किस मार्ग से उस तक जाऊँ मैं
इस निर्मम - विकट परिस्थिति में ।
प्यारी ! बातें न करो चार ।।

 वह धीरे - धीरे बढ़ता है
निज - लक्ष्य को सुदृढ़ करता है
ऐसी प्रचण्ड सी खाई है
अब पास नही परछाई है
पर डरो नही सत्कारो तुम
अपने विचार से मारो तुम
वह मूर्ख नही यह ज्ञान करो
बातें करने में ध्यान धरो
वरना, वह खूब रुलायेगा
तन काट - काट तड़पायेगा
कलुषित विचार वो रखता है
ईश्वर से भी न डरता है
आगन्तुक है बिभीषिका कल
उसको तू सोंच समझ कर चल
प्रज्ञा - प्रयोग में लाओ अब
उसको भी गले लगाओ अब
हे प्रियतम ! ऐसे जीवन में ।
तुम समझो कुछ मेरे विचार ।।

पर सोंच समझ के कार्य करो,
पहले देखो फिर वार करो
वरना प्यारे! फँस जाओगे
जा दलदल में धँस जाओगे
अब उठो शेर! रणभेरी है
तेरे आने की देरी है
और हाँथ में इक शमशीर रखो
तुम युद्ध करो और वीर बनो
मारो उसको, काटो उसको
सौ टुकड़े कर बाँटो उसको
मैं फरसा लेके आता हूँ
उसका सर पैर में लाता हूँ
मैं आवारा कहलाऊँगा
मैं हत्यारा कहलाऊँगा
इसका मुझको दु:ख दर्द नही
भारतीय हूँ मैं, नामर्द नही
मैं बोल चुका जो कहना था ।
प्रियवर क्या हैं तेरे विचार? ।।

छाया है गहरा अन्धकार ।
ऐसे में कुछ कर लो विचार ।।


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