Dhadak - Google |
किसी पतवार के जैसी, किसी मल्हार के जैसी
तुम आई हो मेरे जीवन में मेरे यार के जैसी
मेरे घर - द्वार के जैसे, किसी परिवार के जैसे
तुम आये हो मेरे जीवन में इक संसार के जैसे
सुबह से शाम तक घूँमूँ
हुआ पागल तुम्हें ढूँढूँ
चमकता चाँद सा चेहरा किसी रुख़्सार के जैसे
मेरी साँसों में घुलते हो
मेरे सपनों में मिलते हो
जहाँ देखूँ, जहाँ जाऊँ
हमारे साथ चलते हो
हमारे जिस्म से जाकर
हमारी रूह छूते हो
मेरी धड़कन धड़कती है किसी झनकार के जैसे
अभी तक मुन्तज़िर था मैं
अभी शायद मुनव्वर हूँ
जमीं की ख़्वाहिशें समझूँ
मुकम्मल एक अम्बर हूँ
तड़प देखा तुम्हारी मैं
बरसना चाहता हूँ अब
तुम्हें बस देखता जाऊँ तेरे दीदार के जैसे
तुम्हीं बोलो कहाँ गुम हो
तसव्वुर में तुम्हीं तुम हो
मेरे जीवन में आ जाओ मेरे अधिकार के जैसे
अभी तो है बहुत थोड़ा
मुझे छू लो करो पूरा
मुझे अपना बनाओ तुम मेरे सरकार के जैसे
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