Neel |
बनाना चाहता हूँ मैं बहुत पर गढ़ नही पाता
मेरा दीमाग खाली है मैं औरों को पढूँगा क्या
मैं जितना चाहता हूँ खुद को उतना पढ़ नही पाता
सुनो पापा! न जाने डर कहाँ से आ गया भीतर
कदम बढ़ते हैं मेरे पर मेरा मन बढ़ नही पाता
नदी चुपके से आ पूछी समन्दर क्यों उछलता है
नदी ! सुन बिन तेरे मैं भी किसी से लड़ नही पाता
पता मेरा कोई आवाज मुझसे पूछती अक्सर
बताना चाहता हूँ मैं, मगर वो घर नही पाता
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