सफर ज़िन्दगी का ये कटता नही है
कहाँ चल दिये खुद को हमसे मिलाकर
शहर अजनबी सा ये हमको लगे है
कहाँ चल दिये साथी हमें आज़मा कर
कहाँ तुम चले से गये हो बता दो
दिखाओ नही प्यार अपना जता दो
इबादत तुम्हारी सदा है मेरे संग
कहाँ आ गया तुमको अपना बनाकर
ज़िन्दगी ये तेरे बिन सिमट सी गई है
मैं सच कह रहा यारा , मिट सी गई है
मुकम्मल बयाँ थी तुम्हारी वो बातें
ये क्या कर दिया तुमनें सपने सजाकर
तड़पता मेरा मन तुम्हारे बिना है
कि आओगे कब तुम दिनों-दिन गिना है
बहुत दिन सोयी पड़ी थी ये आँखें
ये क्या कर दिया तुमनें इनको जगाकर
सुनहरा सफर था, सुनहरी थी राहें
सुनहरा था जीवन , सुनहरी वो बाँहें
नज़ारे बदलते गये ज़िन्दगी के -
ये क्या कर दिया तुमनें नज़रें चुराकर
@नीलेन्द्र शुक्ल " नील "