18/04/2018

जाओ कहीं किनारे मनभर रो लो तुम

Jindagi Na Milegi Dodara 

सूरज की आँखों में आँखें डालो तुम
सारे सपने आँखों में यूँ पालो तुम

ब्रह्मा का सिंहासन सारा हिल जाए
उठो शेर, अब तो दहाड़ कर बोलो तुम

क्यूँ डरते हो जीवन को आसाँ समझो
बंद पड़े सारे दरवाजे खोलो तुम

इक माँ है, इक बहना है, इक तात तेरे
इक भाई की आँख के आँसू ले लो तुम

जीवन को खुश रखना है , इक काम करो
सारे रिस्ते हँसते हुए सम्हालो तुम

मुझपे रंग चढ़ाना है तो कुछ सोचो
प्यार का रंग पहले अच्छे से घोलो तुम

तुमपे जीवन लुटा दिया हूँ अब क्या दूँ
दे दूँगा बस हँसते - हँसते बोलो तुम

सारे दर्द निकल कर बाहर होंगे तब
जाओ कहीं किनारे मनभर रो लो तुम

मैं पागल हूँ , मुझे छोड़ उसको देखो
"नील" कभी तो गज़ल मेरी भी गा लो तुम

नोट : यहाँ तात सिर्फ पिता के लिए प्रयोग किया गया है ।

2 comments:

Saurabh Dwivedi said...

'हँसते हँसते बोलो तुम' बहुत अच्छी कविता नीलेन्द्र! उदात्त भावों के समावेश से यह कविता बहुत अच्छी बन गई है। बधाई तुमको इस अनुपम रचना हेतु।

Unknown said...

बधाई हो नीलेन्द्र भाई ऐसे ही कविता की रचना आप करते रहें👍🙏

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