Shubh Vivaah |
सात फेरों से सजा है प्यार का बंधन यहाँ ।।
माह बाकी है अभी से हो रही तैयारियाँ,
सज रहें हैं घर सुहावन सज रही हैं क्यारियाँ
मित्र ,बन्धु संग साथी फोनकर - कर कह रहे
छोड़ दूँगा इस महोत्सव में भरी पिचकारियाँ
फिर तुम्हें उन सात रंगों में रंगूँगा इस कदर
भूल जाओगी सभी दुःख,और आओगी निखर
प्रेम की बातें मगर यह दे रही उलझन यहाँ ।।
बीतती है रात जग - जग ,बीतते हैं दिन सभी
अब नही कहता कोई कुछ काम कर लो तुम कभी
मिल रहा है स्नेह सबसे ,मिल रहा है प्यार भी
हो रहा है आजकल मेरा बहुत सत्कार भी
मैं अचम्भित हो रही हूँ बदलते व्यवहार से
ये बहन भी दूर होती जा रही इस यार से
देवतासम मानते सब कर रहे वन्दन यहाँ ।।
कर रही चहुँओर से अटखेलियाँ भाभी सभी
जा नही सकती अकेली ,रोंकते हैं सब अभी
चहलकदमी हो रही फिर वो अकेली कौन है
भर गया घर - द्वार रिस्तेदार से फिर मौन है
और मेरे गाँव की परिहास करती हैं सखी
बँध गयी ना हे प्रिये !जो खूब तुम बहती रही
लग रही हल्दी तुम्हें ,अब लग रहा चन्दन यहाँ ।।
यूँ अकेली बैठकर है देखती निज रूप को
और दर्पण में खिलाई सर्दियों में धूप को
हाँथ मेंहदी से सजे हैं ,हैं महावर पैर में
खो गई है स्वप्न - सुन्दर से सुहाने सैर में
फिर झिझकती है युँ ही जैसे कि दरवाजा खुला
दी चलो नीचे रही हैं माँ तुम्हें कब से बुला
सज रही है ,संवरती है ,लग रहा उबटन यहाँ ।।
और अब समधी सहित बारात आई द्वार पर
फट रहे गोले चमत्कृत हो रहा आकाश - घर
देखती सखियाँ सभी हैं इस परम - त्यौहार को
देखती हैं संग ही अपने सखी के प्यार को
गूँजता वातावरण है दिव्य मंत्रोच्चार से
हैं पधारे आज चतुरानन मेरे उद्गार से
आज दूल्हा खुश हुआ ,मुस्का रही दुल्हन यहाँ ।।
एक दूजे के गले में डालने माला लगे
तालियों की गड़गड़ाहट पुष्प बरसाने लगे
और अब विवाह की वह पुण्य वेला आ गई
हो गया विवाह ,अब वादे निभाने है चली
कर चुकी अर्पण ,समर्पण भाव - मन सब रीतियाँ
मिल रही है प्रेम से उद्गार करती प्रीतियाँ
काल - वेला बढ़ रही ज्यों बढ़ रही धड़कन यहाँ ।।
चँहचहाती ,कूकती थी जो कभी आँगन तले
सोचती है ,पोछती आँसू लिपटती है गले
माँ,बहन,भाई,पिता सब रो रहे हैं इस कदर
नयन से आँसू नही ,गिरता समुन्दर फूट कर
साथ है अब छूटता आई विदाई की घड़ी
रो रहे हैं वृक्ष - वन सब, यह प्रकृति भी रो पड़ी
नील (आज) करते देवगण भी अतिथि अभिनन्दन यहाँ ।।
आस्था का देव से अब हो रहा संगम यहाँ ।
सात फेरों से सजा है प्यार का बन्धन यहाँ ।।
यह कविता मैं अपने दो दोस्तों को समर्पित करता हूँ -------
दीक्षा मिश्रा (बचपन की दोस्त) और पूजा त्रिपाठी ( बुआ जी )
मेरी तरफ से आप दोनों को आपके विवाहोत्सव की ढ़ेर सारी
शुभकामनाएँ,बधाइयाँ ।।
9 comments:
बहुत ही खूबसूरती के साथ आपने विवाहोत्सव का चित्र अंकित किया है ।
वाह!!!!!
बहुत बहुत आभार शुभा जी आपकी टिप्पणी हमारे उन मित्रों तक शुभकामना के रूप में गई है जिनके लिए मेरे मस्तिष्क यह कविता उपजी और मैंने इसे मूर्तरूप देने का प्रयास किया ।।
धन्यवाद मैम
भावनापूर्ण अभिव्यक्ति। सुंदर
शुक्रिया ध्रुव जी
विवाह का सुन्दर चित्रण
और मेरी ओर से भी उनको विवाह की ढेर सारी शुभकामनायें
धन्यवाद हर्ष जी
Beautiful and the most creative lines about marriage prospects......most of us are even not aware that people like you are still around us to make the things look different and wonderful....thanks a lot for sharing it with us....sudhir tiwari....
Awesome lines Bhai keep going
Bahut Khubsurar prastuti
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