26/12/2016
21/12/2016
स्त्रियों !
स्त्रियों,
क्या चाहती हो ?
हमेशा की तरह अब भी
पुरुषों के तलवों तले रहना
उनके हाँ में हाँ मिलाना
या खुद को अधिकृत समझ ली हो उनका ।
जो द्वापर से लेकर आज तक
फाड़ते आ रहे हैं तुम्हारे चीर
और लगातार फाड़ते जा रहे हैं
निडर और निर्भीक,
क्या तुम्हारी चुप्पी कभी नही टूटने वाली ।
क्या तुम्हारा सिर्फ़ इसलिए जन्म हुआ है
कि सज , सँवर सको
लाली , लिप्स्टिक और काजल जैसे
तमाम तरह के पदार्थों से
सुन्दर दिख सको
या तुमने समझ लिया है
कि नही है तुम्हारा कोई अस्तित्व
इस समाज के भीतर
मात्र बच्चा पैदा करने की मशीन बनने के सिवा ।
क्या यह अधकचरा
डर भरा जीवन
तुम्हें सुख देता है ।
यदि नही तो आवाज ही नही
साथ ही उठाओ तलवार भी
और उतार दो उनको मौत के घाट
जो तुम्हारी अस्मिता को आँच दें,
उतारें तुम्हारी इज्जत सरेबाजार ।
मत रखो अपेक्षा मुझ जैसे
कायरों से,
मानसिकता के साथ - साथ
मजबूत करो अपनी देह भी
नही तो भकोस जाएँगें
तुम्हारा पूरा का पूरा समाज
जैसे
काटते हैं कसाई बेतरतीब सीधी गायों को ।।
17/12/2016
फल
खा लिया है सूखी रोटियाँ
नमक और मिर्च की चटनी के साथ
चल दिया है अपने खेतों की ओर
दाएँ कंधे पर फावड़ा और
बाएँ पर रख एक मटमैला गमछा
गाए जा रहा है,
उठ जाग मुसाफिर भोर भई
अब रैन कहाँ जो सोवत है ।।
बारहों मास बिन थकान
सुबह,दोपहर,शाम
करता रहता है काम ।
डटकर लड़ता है गर्मियों की
लू से और सर्दियों के थपेड़ो से
कभी सूखा तो कभी
मूसलधार बारिश जैसे
दैवीय प्रकोप भी सहना पड़ता है उसे ।।
तनिक भी नही अखरता उसे
खेतों में काम करना ,
अपने पसीने से सींचते हैं खेत
जैसे एक माँ सींचती है स्तनों से
अपने बच्चों का पेट ।।
भरसक करते हैं मेहनत,
खेत को उर्वरा बनाने के लिए
बीज बोने के लिए
फसल की अच्छी पैदावार के लिए ...
कर्म करते - करते निकल जाते हैं
सालो साल
खोलते ही आँख गर्त में दिखता
वर्तमान काल ।।
सूख गए हैं आँसू आँखों में ही
उधड़ गई हैं चमड़ियाँ काम करते - करते
झुक गए हैं कंधे दुनिया के बोझ से
गरबीली गरीबी से आँखों में भरा डर
रस्सी से लटका देता है उनका सर
और यही फल है इन शासनों में
रस्सी से लटकता हुआ किसान .........
नमक और मिर्च की चटनी के साथ
चल दिया है अपने खेतों की ओर
दाएँ कंधे पर फावड़ा और
बाएँ पर रख एक मटमैला गमछा
गाए जा रहा है,
उठ जाग मुसाफिर भोर भई
अब रैन कहाँ जो सोवत है ।।
बारहों मास बिन थकान
सुबह,दोपहर,शाम
करता रहता है काम ।
डटकर लड़ता है गर्मियों की
लू से और सर्दियों के थपेड़ो से
कभी सूखा तो कभी
मूसलधार बारिश जैसे
दैवीय प्रकोप भी सहना पड़ता है उसे ।।
तनिक भी नही अखरता उसे
खेतों में काम करना ,
अपने पसीने से सींचते हैं खेत
जैसे एक माँ सींचती है स्तनों से
अपने बच्चों का पेट ।।
भरसक करते हैं मेहनत,
खेत को उर्वरा बनाने के लिए
बीज बोने के लिए
फसल की अच्छी पैदावार के लिए ...
कर्म करते - करते निकल जाते हैं
सालो साल
खोलते ही आँख गर्त में दिखता
वर्तमान काल ।।
सूख गए हैं आँसू आँखों में ही
उधड़ गई हैं चमड़ियाँ काम करते - करते
झुक गए हैं कंधे दुनिया के बोझ से
गरबीली गरीबी से आँखों में भरा डर
रस्सी से लटका देता है उनका सर
और यही फल है इन शासनों में
रस्सी से लटकता हुआ किसान .........
12/12/2016
आसान ये कहाँ है ( गज़ल )
तुम मुझको भुला पाओ ,
आसान ये कहाँ है
मैं तुम तक पहुँच पाऊँ
आसान ये कहाँ है
हसरत भरा हृदय है
खामोशियाँ हैं , लब पे
चिलमन से झाँकना यूँ
आसान ये कहाँ है
रातें ये शबनमी हैं
दिन भी है सूफियाना
पर दोपहर में तपना
आसान ये कहाँ है
चेहरे पे लट बिछाकर
सोई थी छाँव में तुम
हाँथों से लट हटाना
आसान ये कहाँ है
रंगीन है हँथेली
मेंहदी की खुशबुओं से
चेहरे का नूर होना
आसान ये कहाँ है
होंठो पे सुरमयी से
जो बाँध आ बँधे हैं
उनको यूँ गुनगुनाना
आसान ये कहाँ है
भटका हूँ राह में पर
फिर मैं सम्हल गया हूँ
तुमको ही भूल पाना
आसान ये कहाँ है
तुम मुझको भुला पाओ
आसान ये कहाँ है
मैं तुम तक पहुँच पाऊँ
आसान ये कहाँ है
आसान ये कहाँ है
आसान ये .....है
आसान ये कहाँ है
मैं तुम तक पहुँच पाऊँ
आसान ये कहाँ है
हसरत भरा हृदय है
खामोशियाँ हैं , लब पे
चिलमन से झाँकना यूँ
आसान ये कहाँ है
रातें ये शबनमी हैं
दिन भी है सूफियाना
पर दोपहर में तपना
आसान ये कहाँ है
चेहरे पे लट बिछाकर
सोई थी छाँव में तुम
हाँथों से लट हटाना
आसान ये कहाँ है
रंगीन है हँथेली
मेंहदी की खुशबुओं से
चेहरे का नूर होना
आसान ये कहाँ है
होंठो पे सुरमयी से
जो बाँध आ बँधे हैं
उनको यूँ गुनगुनाना
आसान ये कहाँ है
भटका हूँ राह में पर
फिर मैं सम्हल गया हूँ
तुमको ही भूल पाना
आसान ये कहाँ है
तुम मुझको भुला पाओ
आसान ये कहाँ है
मैं तुम तक पहुँच पाऊँ
आसान ये कहाँ है
आसान ये कहाँ है
आसान ये .....है
Subscribe to:
Posts (Atom)
रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है!
देसभक्त कै चोला पहिने विसधर नाग पले है रामराज कै रहा तिरस्कृत रावणराज भले है ।। मोदी - मोदी करें जनमभर कुछू नहीं कै पाइन बाति - बाति...
-
आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ जिन्दगी जगमगाती रहे उम्रभर कोई हँस के लगाती रहे उम्रभर रंग गाढ़ा हो मन का के छूटे ...
-
बस तुम्हारे लिए........... मैं अधूरे ख़्वाब लेकर के बता जाऊँ कहाँ तू चली आ , तू चली आ , तू चली आ अब यहाँ - 2 मैं कहूँ कैसे तुम्हारी...