सृष्टि का निर्माण कर दूँगा प्रिये !वादा मेरा है ।
तुम नही रोओ कि रोएगा जहाँ वादा मेरा है ।।
अब हवाएँ मुक्त होंगी सृष्टि के उल्लास में
साथ तुम मेरे रहोगी माह उस मधुमास में
चाहता हूँ साथ मैं अपने हृदय की संगिनी का
जिस तरह से साथ है अम्बुधि का अमरतरंगिनी का
आज कैसे छोड़ दूँ ऐसे गलीचों में तुम्हें
फिर मिलेंगे दिव्य इन्दीवर बगीचों में तुम्हें ।
व्योम से निर्झर गिरेंगी बूँद ये वादा मेरा है ।।
आज होंठों को सजाकर इस हृदय से दूर हो
या कि कोई है समस्या आज क्यों ? मजबूर हो
तुम चलो तुमको दिखाऊँ चन्द्रमा उस छोर में
शीत रश्मि गिर रही है उस दिशा, उस ओर में
यूँ फँसे हैं आज कम्पित हो रहा है मन मेरा
यूँ हुई बारिश शहर ,घर भीगता आँगन मेरा ।
साथ दूँगा मैं सदा मजधार में वादा मेरा है ।।
है तमन्ना कुछ नही अब ये जगत मैं छोड़ दूँ
मैं रहूँ इक तुम रहो बस जिन्दगी को मोड़ दूँ
आँख का आँसू बनूँ मैं इस कदर उलझा रहूँ
तू नजर के सामने रह मैं सदा सुलझा रहूँ
जिन्दगी वीराँ नही हो एक - दूजे के लिये
दिन,महीने,साल हों आशिक मरीजे के लिये ।
डूब जाऊँगा तुम्हारे प्यार में वादा मेरा है ।।
मैं सदा सोऊँ तुम्हारी जुल्फ की छैयाँ तले
आज आ जाओ यहाँ सब छोड़ लग जाओ गले
जिन्दगी ये है समर्पित तुम कहो क्या कह रही
यह मिलन की वार्ता सुन मन्द वायु बह रही
फिर कहो मेरी प्रिये किस बात की अब देर है
सत्य कहता हूँ प्रिये ! ये न गज़ल, न शेर है ।
दो हृदय का मेल हो जाएगा ये वादा मेरा है ।।
काव्य के झंकृत स्वरों को मान दे दूँ मैं अभी
दिव्य उर की कल्पना सम्मान दे दूँ मैं अभी
हाँथ जो इक बार पकड़े फिर नही छोड़ेगें हम
साथ कदमों से तुम्हारे मिल चलेंगें ये कदम
मैं नही इन वर्जनाओं को करूँ स्वीकार अब
हाँथ यूँ पकड़ो मेरा मैं त्याग दूँ संसार सब ।
जिन्दगी भर साथ न छोडूँगा ये वादा मेरा है ।।
No comments:
Post a Comment